आया चुनाव सज गई सितारों की सेना… पॉलिटिकल पर्दे पर कौन हुआ हिट, कौन रहा फ्लॉप?

आया चुनाव सज गई सितारों की सेना… पॉलिटिकल पर्दे पर कौन हुआ हिट, कौन रहा फ्लॉप?
आया चुनाव सज गई सितारों की सेना… पॉलिटिकल पर्दे पर कौन हुआ हिट, कौन रहा फ्लॉप?


सितारों
की
राजनीतिक
पारी

लोकसभा
चुनाव
2024
का
मैदान
तैयार
है
तो
फिल्मी
सितारों
की
सेना
फिर
से
सज
गई
है.
लेकिन
हिंदी
पट्टी
के
फिल्मी
सितारे
क्या
कभी
राजनीति
में
भी
संग्राम
कर
पाते
हैं,
जैसा
कि
फिल्मी
पर्दे
पर
नजर
आते
हैं?
सवाल
जितना
रोचक
है
उतना
ही
विचारणीय
भी.
वो
गाना
तो
सुना
है

आपने-
कोई
हीरो
यहां
कोई
जीरो
यहां.
यकीनन
सियासी
स्क्रीन
पर
इन
फिल्मी
सितारों
में
कोई
स्टार
है
तो
कोई
बेकार
है.
बड़ा
अनोखा
है
इनका
ट्रैक
रिकॉर्ड?
सितारे
महफिल
की
शान
होते
हैं
और
अपनी
चमक
बिखेरने
के
लिए
जाने
जाते
हैं.
लेकिन
रिकॉर्ड
बता
रहा
है
राजनीति
की
दुनिया
को
इन
फिल्मी
सितारों
ने
महफिल
से
ज्यादा
कुछ
नहीं
समझा.
आमतौर
पर
सिनेमा
के
पर्दे
पर
ये
जुल्म,
अन्याय
और
भ्रष्टाचार
के
खिलाफ
नायक
और
महानायक
बनते
हैं
और
ढुशूं-ढुशूं
धायं-धायं
से
सोसायटी
के
खलनायकों
को
पल
भर
में
धराशाई
कर
देते
हैं
लेकिन
वास्तविक
जिंदगी
में
इनका
करिश्मा
शायद
ही
कभी
नजर
आता
है.
लाइट…
कैमरा…
एक्शन…
तो
होता
है
लेकिन
‘रोल’
नहीं
हो
पाता.

तो
क्या
सिनेमा
के
पर्दे
के
सितारे
केवल
जीत
की
गारंटी
होते
हैं?
विकास
के
काम
की
गारंटी
क्यों
नहीं?
क्या
पॉलिटिकल
पार्टी
इन
सितारों
को
केवल
इसलिए
टिकट
देती
है
कि
ये
इनकी
सीटों
की
संख्या
को
बढ़ा
सकें?
मौजूदा
2024
के
लोकसभा
चुनाव
में
एक
बार
फिर
कुछ
नये
सितारे
अपना
पॉलिटिकल
डेब्यू
कर
रहे
हैं
तो
कई
पुराने
सितारों
ने
अपनी
नई
पॉलिटिकल
पिक्चर
में
दोबारा
लाइट
एक्शन
कैमरा
शुरू
कर
दिया
है.
लेकिन
सवाल
कायम
है
अगर
जीत
कर
संसद
पहुंचे
तो
इनका
रोल
क्या
होगा?

कौन-कौन
सितारे
हैं
मैदान
में?

कभी
नेपोटिज्म
और
लॉबिंग
तो
कभी
फिल्म
इंडस्ट्री
में
हाशिये
पर
हिंदुइज्म
की
मुहिम
चलाकर
सोशल
मीडिया
से
लेकर
न्यूज
मीडिया
तक
सुर्खियों
में
रहीं
सिल्वर
स्क्रीन
की
‘क्वीन’
और
‘थलैवी’
कंगना
रनौत
हिमाचल
प्रदेश
की
मंडी
से
चुनाव
लड़
रही
हैं
जबकि
छोटे
पर्दे
पर
मर्यादा
पुरुषोत्तम
श्रीराम
की
भूमिका
निभाकर
घर-घर
में
मशहूर
अरुण
गोविल
पश्चिमी
उत्तर
प्रदेश
के
मेरठ
से
ताल
ठोक
रहे
हैं.
अगर
ये
दोनों
सितारे
जीत
जाते
हैं
तो
क्या
अपने
सार्वजनिक
जीवन
में
भी
उन
संदेशों
को
कितना
आगे
बढ़ाएंगे
जिसकी
बदौलत
इन्हें
समाज
में
अपार
लोकप्रियता
मिली
है?
क्या
कंगना
संसद
में
पहुंचने
पर
भी
नेपोटिज्म
के
मसले
पर
अपनी
आवाज
बुलंद
करेंगी
या
अरुण
गोविल
राजनीति
में
श्रीराम
के
आदर्श
का
उदाहरण
पेश
कर
सकेंगे?
इसका
इंतजार
रहेगा.

उधर
छोटे
मियां
और
हीरो
नंबर
वन
गोविंदा
ने
सियासत
की
दुनिया
में
घर
वापसी
कर
ली
है.
कभी
राजनीति
से
तौबा
कर
चुके
गोविंदा
फिर
से
जोश
में
हैं.
फिलहाल
सिनेमा
तो
नहीं
कर
रहे
सोचा
चलो
सियासी
पारी
ही
हो
जाए.
कुछ
तो
रिलीज
होना
चाहिए.
बॉक्स
ऑफिस
ना
सही
पब्लिक
पिक्चर
ही
सही.
उधर
कुछ
ऐसे
नाम
भी
हैं
जिन्होंने
पिछले
कुछ
सालों
से
संसद
से
लेकर
सड़क
तक
खूब
चमक
बिखेरी
हैं.
मसलन
मथुरा
से
हेमा
मालिनी,
दिल्ली
नॉर्थ-वेस्ट
से
मनोज
तिवारी,
गोरखपुर
से
रवि
किशन
तो
आसनसोल
से
बिहारी
बाबू
शत्रुघ्न
सिन्हा
जो
कभी
पटना
साहिब
से
चुनाव
लड़ते
थे.
लेकिन
इन
सितारे
राजनेताओं
का
बतौर
संसदीय
पारी
में
आखिर
योगदान
क्या
रहा
है,
इस
पर
बहस
की
जा
सकती
है.

क्यों
मोहभंग
होता
है
सितारों
का?

राजनीति
के
मैदान
में
फिल्मी
सितारों
का
आना
कोई
नई
बात
नहीं.
ये
सिलसिला
छठे-सातवें
दशक
से
जारी
है.
लेकिन
राजनीति
से
मोहभंग
होने
की
कहानी
भी
कम
नहीं
है.
तमाम
लोगों
को
याद
होगा
फिल्मी
पर्दे
के
महानायक
कहे
जाने
वाले
अपने
दौर
के
एंग्री
यंग
अमिताभ
बच्चन
ने
भी
बड़े
ही
जोर
शोर
से
अपनी
सियासी
पारी
का
आगाज
किया
था.
1984
के
लोकसभा
चुनाव
में
इलाहाबाद
से
मुनादी
करने
के
बाद
उन्होंने
पर्दे
पर
‘इंकलाब’
किया
और
पर्दे
पर
ही
सारे
भ्रष्ट
मंत्रियों
को
भून
दिया.
लेकिन
वास्तविक
जिंदगी
में
जब
तमाम
तरह
के
आरोपों
से
घिरने
लगे
तो
भावुकता
हावी
हो
गई
और
राजनीति
को
अलविदा
कहते
हुए-
ऐलान
कर
दिया-
‘मैं
आजाद
हूं’.

अमिताभ
बच्चन
की
तरह
ही
अपने
समय
के
सुपरस्टार
राजेश
खन्ना,
धर्मेंद्र
और
उनके
स्टार
बेटे
सनी
देओल
भी
राजनीति
में
आए
लेकिन
कोई
कमाल
नहीं
दिखा
सके.
ना
संसद
में
उपस्थिति
दिखी
और
ना
ही
सार्वजनिक
जीवन
में
एक
राजनीतिज्ञ
की
भूमिका
निभाई.
बस
पार्टी
के
लिए
शो
पीस
बने
रहे.
सनी
देओल
ने
हैंड
पंप
से
लेकर
बिजली
के
खंभे
तक
उखाड़कर
पर्दे
पर
पाकिस्तान
को
पस्त
कर
दिया
और
बॉक्स
ऑफिस
पर
कमाई
की
सुनामी
ला
दी
लेकिन
जनप्रतिनिधि
के
रूप
में
उनकी
भूमिका
सुपर
फ्लॉप
रही.
धर्मेंद्र
ने
कहा
उन्हें
राजनीति
की
एबीसीडी
नहीं
आती
तो
सनी
देओल
ने
खुद
को
राजनिति
में
अनफिट
बताया.

हालांकि
बतौर
सांसद
हेमा
मालिनी
यदा-कदा
सामाजिक-सांस्कृतिक
जीवन
में
सक्रिय
नजर
आती
रही
हैं
तो
शत्रुघ्न
सिन्हा
और
राज
बब्बर
जैसे
सितारों
की
भी
राजनीति
में
फुलटाइमर
वाली
संलग्नता
हमेशा
बनी
रही
है.
जीतें
या
हारें,
राजनीति
से
सक्रिय
रिश्ता
बनाये
रखा
और
लोकतंत्र
को
मजबूती
दी.
जया
प्रदा
ने
भी
राजनीति
और
समाज
से
लंबे
समय
तक
रिश्ता
बनाये
रखा.
लेकिन
सिल्वर
स्क्रीन
की
‘उमराव
जान’
रेखा
बतौर
राज्यसभा
सांसद
सदन
से
ज्यादातर
बार
नदारद
ही
रहीं.
हां,
वोटिंग
के
दिन
लोकतंत्र
में
मतदान
की
प्रेरणा
देने
के
लिए
वो
बूथ
तक
जरूर
पहुंचती
हैं
और
स्याही
लगी
ऊंगली
भी
कैमरे
की
तरफ
दिखाती
हैं.
ताकि
हम
सब
भी
वोट
देने
घर
से
निकलें.

इन
सितारों
ने
संसद
में
दिखाया
दम

हालांकि
इस
मुद्दे
का
एक
दूसरा
पहलू
भी
है.सारे
फिल्मी
सितारों
ने
इस
मोर्चे
पर
निराश
नहीं
किया
है.
इतिहास
के
पन्ने
पलटें
तो
कई
फिल्मी
हस्तियों
ने
संसद
के
अंदर
और
बाहर
सक्रियता
बनाए
कर
रखी
है.
उन्होंने
जनप्रतिनिधि
की
माकूल
भूमिका
निभाने
की
चेष्टा
की
है.
बतौर
लोकसभा
सांसद
सुनील
दत्त
की
पारी
उत्साह
जगाने
वाली
रही
है.
करीब
डेढ़
दशक
से
ज्यादा
समय
तक
वो
सांसद
रहे
और
जमीन
से
जुड़े
रहने
का
पूरा
प्रयास
किया,
जिसकी
सराहना
की
जाती
है.
सुनील
दत्त
मुंबई
में
बतौर
जनप्रतिनिधि
स्लम
बस्तियों
में
जाकर
सुधार
के
काम
कर
चुके
थे
तो
पंजाब
में
सांप्रदायिक
सौहार्द
के
लिए
मुंबई
से
अमृतसर
तक
की
पदयात्रा
की
थी.
एक
जागरुकता
अभियान
चलाया
था.

वहीं
राज्यसभा
सांसद
के
तौर
पर
शायर,
गीतकार
और
पटकथा
लेखक
जावेद
अख्तर
का
योगदान
बहुत
सराहनीय
रहा
है.
उन्होंने
कॉपीराइट
संशोधन
कानून
के
लिए
लंबी
लड़ाई
लड़ी
और
जीत
हासिल
की.
उन्होंने
मुहिम
चलाकर
फिल्म
जगत
के
तमाम
गीतकारों
और
संगीतकारों
के
अधिकार
की
रक्षा
करने
वाला
कानून
में
संशोधन
करवाया,
जिसकी
लोग
प्रशंसा
करते
हैं.
राज्यसभा
में
कभी
पृथ्वीराज
कपूर
भी
कला
और
सिनेमा
से
जुड़े
मुद्दे
उठाते
थे
तो
आज
भी
जया
बच्चन
ज्वलंत
मुद्दों
पर
अपनी
बुलंद
आवाज
के
लिए
जानी
जाती
हैं.