विपक्षी एकता के लिए रामलीला मैदान ही सहारा

विपक्षी एकता के लिए रामलीला मैदान ही सहारा
विपक्षी एकता के लिए रामलीला मैदान ही सहारा


रामलीला
मैदान
में
एकजुट
हुआ
इंडिया
गठबंधन

सत्ताधारी
दल
की
नीतियों
के
ख़िलाफ़
विपक्ष
की
एकजुटता
का
सहारा
रामलीला
मैदान
ही
है.
वर्ष
2011
में
खुद
अरविंद
केजरीवाल
इसी
रामलीला
मैदान
से
निकल
कर
दिल्ली
में
आंधी
की
तरह
छा
गए
थे.
यह
वही
रामलीला
मैदान
है,
जहां
से
लोकनायक
जय
प्रकाश
नारायण
ने
1977
में
इसी
मैदान
में
विशाल
जनसभा
की
थी.
यह
जेपी
की
इस
सभा
का
कमाल
था
कि
जनता
पार्टी
इंदिरा
गांधी
सरकार
को
हटा
कर
सत्ता
में
आई.
रामलीला
मैदान
की
उस
रैली
में
कांग्रेस
की
निरंकुश
सत्ता
के
विरुद्ध
लेफ़्ट
और
राइट
पार्टियाँ
एक
साथ
मंच
पर
आई
थीं.

इसी
तरह
1983
में
एनटी
रामराव
(नंदमूरि
तारक
रामराव)
ने
प्रधानमंत्री
इंदिरा
गांधी
के
विरुद्ध
सारी
विपक्षी
दलों
की
रैली
की
थी.
भारत
देशम
एनटी
रामराव
की
ही
कल्पना
थी.
इसी
तर्ज़
पर
अभी
31
मार्च
को
भी
ऐसा
ही
नजारा
फिर
यहां
दिखा.
दिल्ली
के
मुख्यमंत्री
अरविंद
केजरीवाल
को
ED
ने
21
मार्च
को
गिरफ़्तार
कर
लिया
था.
इसे
सरकार
की
निरंकुशता
बताते
हुए
28
विपक्षी
दलों
ने
अपनी
एकता
का
सबूत
दिया.

कई
आंदलनों
का
गवाह
रहा
रामलीला
मैदान

दिल्ली
के
रामलीला
मैदान
ने
कई
दौर
देखे
हैं.
1857
से
लेकर
आज
तक
के
सारे
आंदोलनों
का
यह
साक्षी
रहा
है.
बहादुर
शाह
ज़फ़र
के
समय
यहीं
पर
राम
लीला
होती
थी.
पर
जब
भी
सरकार
के
विरुद्ध
बग़ावत
के
सुर
फूटे,
विद्रोहियों
ने
यही
मंच
चुना.
31
मार्च
को
विपक्षी
एकजुटता
के
प्रदर्शन
के
दौरान
इस
मंच
पर
अरविंद
केजरीवाल
की
पत्नी
सुनीता
केजरीवाल
और
हेमंत
सोरेन
की
पत्नी
कल्पना
सोरेन
भी
उपस्थित
थीं.
इन
दोनों
महिलाओं
ने
अपने
पति
के
साथ
हुई
नाइंसाफ़ी
की
बात
रैली
में
खूब
ज़ोरदार
ढंग
से
कही.
झारखंड
के
मुख्यमंत्री
हेमंत
सोरेन
को
ED
ने
31
जनवरी
को
गिरफ़्तार
कर
लिया
था.
हालांकि
गिरफ़्तारी
के
पूर्व
ही
उन्होंने
राज
भवन
जा
कर
इस्तीफ़ा
दे
दिया
था
और
झारखंड
मुक्ति
मोर्चा
विधायक
दल
की
बैठक
बुला
कर
चंपई
सोरेन
को
मुख्यमंत्री
चुनवा
दिया
था.
रविवार
की
रैली
में
झारखंड
के
मुख्यमंत्री
चंपई
सोरेन
भी
आए
हुए
थे.

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भी
पढ़ें

रैली
में
विपक्षी
दलों
ने
दिखाई
एकजुटता

उत्तर
प्रदेश
के
मुख्यमंत्री
रहे
समाजवादी
दल
के
सुप्रीमो
अखिलेश
यादव,
NCP
(शरद
पवार)
के
नेता
शरद
पवार
तथा
CPM
के
महासचिव
सीताराम
येचुरी
तथा
CPI
के
डी.
राजा
भी
इस
शक्ति
प्रदर्शन
में
आए.
सर्वाधिक
उत्साह
कांग्रेस
का
था.
सोनिया
गांधी,
राहुल
गांधी,
प्रियंका
गांधी
और
पार्टी
के
राष्ट्रीय
अध्यक्ष
मल्लिकार्जुन
खडगे
भी
इस
रैली
में
थे.
सुनीता
केजरीवाल
तो
पूरी
सभा
में
सोनिया
गांधी
के
बगल
में
बैठी
रहीं.
यह
संकेत
था
कि
आम
आदमी
पार्टी
का
कांग्रेस
के
साथ
इंडिया
गठबंधन
में
बने
रहना
पक्का
है.
इस
रैली
में
TMC
के
नेता
भी
थे.
बीच
में
जो
अफ़वाहें
उड़
रही
थीं
कि
इंडिया
गठबंधन
में
दरार
है,
उसे
अरविंद
केजरीवाल
की
गिरफ़्तारी
ने
भर
दिया.
अब
हर
विपक्षी
नेता
को
लग
रहा
है,
कि
यदि
वह
इस
एकता
में
कमजोर
दिखा
तो
ED
का
शिकंजा
उसके
ऊपर
भी
पड़ेगा.
अखिलेश
यादव
ने
स्पष्ट
तौर
पर
पूरे
आत्म
विश्वास
के
साथ
कहा,
कि
इस
चुनाव
में
भाजपा
की
हार
तय
है.

चुनाव
में
एकजुटता
का
दिखना
जरूरी

लेकिन
इस
एकजुटता
का
फल
तब
ही
पता
चलेगा,
जब
ये
सारे
नेता
टिकट
आवंटन
में
ऐसी
ही
एकता
दिखाएं.
क्योंकि
हर
विपक्षी
नेता
की
महत्त्वाकांक्षाएं
भी
होती
हैं.
उसे
लगता
है,
उसकी
ताक़त
का
लाभ
कांग्रेस
उठा
ले
जाएगी.
क्योंकि
कांग्रेस
ही
इनमें
अखिल
भारतीय
दल
है.
वह
सभी
जगह
लड़
रही
है
और
हर
जगह
उसका
वोट
बैंक
है.
इसलिए
क्षेत्रीय
दल
चाहते
हैं,
जिन
राज्यों
में
उनका
वोट
है,
उनमें
वह
कांग्रेस
को
कम
से
कम
सीटें
दें.
इसके
अतिरिक्त
पश्चिम
बंगाल
में
ममता
बनर्जी
CPM
से
लड़
कर
2010
में
वहां
सत्ता
पर
पहुंची
थीं.
इसलिए
लेफ़्ट
फ़्रंट
से
उनकी
स्वाभाविक
शत्रुता
है.
केरल
में
लेफ़्ट
सदैव
कांग्रेस
से
लड़ती
रही
है,
इसीलिए
CPI
ने
केरल
की
वायनाड
सीट
पर
राहुल
गांधी
के
ख़िलाफ़
एनी
राजा
को
लड़ाने
का
फ़ैसला
किया
है.
यही
स्थिति
तिरुअनंतपुरम
में
कांग्रेस
के
शशि
थरूर
के
विरुद्ध
है.
वहां
CPI
के
पन्नीयन
रवींद्रन
मैदान
में
है,
उधर
भाजपा
का
उम्मीदवार
केंद्रीय
मंत्री
राजीव
चंद्रशेखर
भी
तिरुअनंतपुरम
में
अच्छा
ख़ासा
दख़ल
रखते
हैं.

NDA
के
पास
प्रधानमंत्री
पद
का
चेहरा

पंजाब,
गुजरात
और
गोवा
में
आप
और
कांग्रेस
के
बीच
द्वन्द
है.
महाराष्ट्र
में
शिव
सेना
के
ऊद्धव
ठाकरे
गुट
की
कांग्रेस
से
लड़ाई
है.
अर्थात्
इंडिया
की
एकजुटता
अभी
तक
आधे-अधूरे
मन
वाली
है.
इस
मामले
में
भाजपा
नीत
गठबंधन
NDA
काफ़ी
आगे
है.
एक
तो
उसके
पास
प्रधानमंत्री
पद
का
सर्वमान्य
चेहरा
है.
अभी
फ़िलहाल
उस
चेहरे
को
चुनौती
नहीं
दी
जा
सकती.
दूसरे
NDA
के
घटक
दलों
के
बीच
अंतर्द्वंद
नहीं
है.
बिहार
में
चिराग़
पासवान
को
पांच
सीटें
दे
कर
भाजपा
ने
एक
बड़प्पन
दिखाया
है.
जबकि
चिराग़
के
चाचा
पशुपति
पारस
एक
भी
सीट

पाकर
मोदी
के
गुणगान
कर
रहे
हैं.
यूं
भी
सीधी-सी
बात
है,
सत्ताधारी
दल
के
पास
असंतुष्ट
नेताओं
को
संतुष्ट
कर
लेने
के
कई
मौक़े
होते
हैं.
इसलिए
जिसे
भी
जो
मिल
गया,
उसी
से
वह
खुद
को
धन्य
समझ
लेता
है.

विपक्षी
दलों
की
एकजुटता
पर
संदेह

विपक्षी
दलों
के
पास
परस्पर
समझौता
बहुत
ज़रूरी
है.
अगर
एक
भी
चूल
हिल
गई
तो
मतदान
तक
उसका
अंगद
की
तरह
पांव
जमा
कर
खड़े
रहना
बहुत
मुश्किल
है.
रविवार
को
रामलीला
मैदान
की
रैली
में
जो
दल
परस्पर
एकजुटता
दिखा
रहे
थे,
वह
स्थायी
रह
पाएगी
या
नहीं
यह
महत्त्वपूर्ण
है.
CPI
और
CPM
को
छोड़
दें
तो
कौन
कितना
भरोसेमंद
है,
यह
कहना
मुश्किल
है.
अरविंद
केजरीवाल
की
अगली
रणनीति
क्या
होगी,
किसी
को
नहीं
पता.
इसी
तरह
ऊद्धव
ठाकरे,
ममता
बनर्जी,
शरद
पवार
भी
कब
किससे
झगड़ा
कर
लें,
कुछ
नहीं
कहा
जा
सकता.
31
मार्च
की
रैली
में
CPM
नेता
सीताराम
येचुरी
ने
अपने
भाषण
में
हिंदू
मिथकों
में
से
एक
सागर
मंथन
का
वर्णन
किया.
उन्होंने
कहा
सागर
मंथन
से
विष
भी
निकला
और
अमृत
भी.
लेकिन
अमृत
छल
के
द्वारा
देवता
ले
गए.

सीताराम
येचुरी
के
इस
भाषण
को
भाजपा
अपने
लिए
इस्तेमाल
कर
सकती
है.
वह
कहेगी,
हिंदू
मिथकों
का
मज़ाक़
उड़ाने
वाले
कम्युनिस्ट
भी
अब
उन्हीं
का
सहारा
ले
रहे
हैं.
यकीनन
पिछली
22
जनवरी
को
अयोध्या
में
हुए
रामलला
मूर्ति
की
प्राण
प्रतिष्ठा
में
जैसा
जन
सैलाब
उमड़ा,
उसने
सभी
को
हिंदू
कथाओं
का
मुरीद
बना
दिया.
भले
ये
लोग
राम
कथा
को
काल्पनिक
बताएं
लेकिन
अब
उन्हीं
कथाओं
का
सहारा
ले
रहे
हैं.
सवाल
यह
उठता
है,
कि
प्रधानमंत्री
नरेंद्र
मोदी
ने
जो
आंधी
चलाई
है,
क्या
राहुल
गांधी
उसको
हल्के
में
उड़ा
पाएंगे.
रविवार
के
उनके
भाषण
में
रोष
तो
बहुत
था,
मगर
नरेंद्र
मोदी
को
यूं
ख़ारिज
करना
आसान
नहीं
है.
इसमें
कोई
शक
नहीं
कि
आम
मतदाता
में
मौजूदा
सरकार
के
प्रति
असंतोष
है.
लेकिन
जैसे
ही
नरेंद्र
मोदी
के
विरुद्ध
कौन?
तो
वह
चुप
साध
लेती
है.

यही
नरेंद्र
मोदी
की
जीत
है.
दिल्ली
में
इंडिया
गठबंधन
जब
अपनी
एकजुटता
दिखा
रहा
था,
ठीक
उसी
समय
प्रधानमंत्री
नरेंद्र
मोदी
वेस्ट
यूपी
में
राष्ट्रीय
लोक
दल
(RLD)
के
साथ
अपनी
एकजुटता
दिखा
रहे
थे.
यह
एकजुटता
काल्पनिक
नहीं
थी.
उन्होंने
RLD
को
प्रदेश
में
दो
सीटें
दे
कर
संतुष्ट
कर
दिया
है.
बागपत
से
राज
कुमार
सांगवान
और
बिजनौर
से
चंदन
चौहान
भाजपा-RLD
के
साझा
प्रत्याशी
हैं.
मेरठ
में
नरेंद्र
मोदी
की
यह
रैली
इस
सफल
एकजुटता
का
प्रतीक
थी.