
कानपुर
के
नौबस्ता
स्थित
परसौली
में
मुख्य
अतिथि
के
तौर
पर
करौली
शंकर
गुरुदेव
ने
क्षत्रिय
एकता
पर
बल
दिया
है.
अभिमन्यु
क्षत्रिय
सभा
में
उन्होंने
कहा
कि
बिना
भगवान
परशुराम
के
आदर्शों
पर
चले
हम
क्षत्रिय
धर्म
का
पालन
बिल्कुल
भी
नहीं
कर
सकते.
इस
दौरान
अभिमन्यु
क्षत्रिय
सभा
द्वारा
पूज्य
गुरुदेव
का
भव्य
स्वागत
किया
गया.
गुरुदेव
करौली
शंकर
महादेव
ने
वहां
बैठे
सभी
लोगों
की
वैदिक
ईश्वरीय
चिकित्सा
भी
की
जिसमें
बच्चों
से
लेकर
बूढ़े
तक
सब
शामिल
हुए.
करौली
शंकर
गुरुदेव
ने
वहां
बैठे
सभी
लोगों
को
संकल्प
करवाया
जिसमें
मुख्य
रूप
से
दरबार
के
Memory
Purification
Programme
के
तहत
बच्चों
की
स्मृतियों
को
शुद्ध
किया
गया.
इसमें
बच्चों
को
मोबाइल
की
लत
और
बुरी
आदतों
मसलन
मदिरा
से
तत्काल
छुटकारा
दिलाने
की
सीख
दी
गई.
अभिमन्यु
क्षत्रिय
सभा
के
कार्यालय
निर्माण
के
लिए
करौली
शंकर
गुरुदेव
ने
11
लाख
रुपए
और
कार्यालय
में
ही
भगवान
परशुराम
की
भव्य
प्रतिमा
स्थापित
कर
मंदिर
बनाने
के
लिए
अलग
से
5
लाख
रुपए
का
योगदान
देने
की
घोषणा
भी
की.
उन्होंने
कहा
कि
भगवान
परशुराम
का
मंदिर
अभिमन्यु
क्षत्रिय
कार्यालय
के
साथ
ही
बनेगा
जो
कि
ब्राह्मण
–
क्षत्रिय
एकता
का
सबसे
बड़ा
प्रतीक
बनेगा.
उन्होंने
कहा
कि
इससे
क्षत्रियों
की
नई
पीढ़ी
को
सही
जानकारी
मिलेगी
कि
भगवान
परशुराम
से
बड़ा
क्षत्रिय
और
ब्राह्मण
की
एकता
का
प्रतीक
संसार
मे
दूसरा
कोई
नहीं
है.
समारोह
में
पूर्व
विधायक
रघुनंदन
सिंह
भदौरिया,
डॉक्टर
देवराज,
अभिमन्यु
क्षत्रिय
सभा
अध्यक्ष
पंकज
तोमर,
महामंत्री
नरेंद्र
सिंह
सेंगर,
मनोजानंद(उर्फ
गोल्डन
बाबा),
शंकर
सेना
प्रदेश
अध्यक्ष
सुबोध
चोपड़ा,
जिला
अध्यक्ष
विशाल
बाजपेई,
आदि
विशेष
रूप
से
उपस्थित
रहे
!
अज्ञानियों
ने
भगवान
परशुराम
का
किया
दुष्प्रचार-
गुरुदेव
करौली
शंकर
गुरुदेव
ने
बताया
कि
भगवान
परशुराम
क्षत्रिय
एवं
ब्राह्मण
दोनों
की
एकता
के
अद्भुत
प्रतीक
हैं.
वह
आज
भी
हमारे
बीच
हैं
क्योंकि
वह
चिरंजीवी
हैं.
यदि
परशुराम
ब्राह्मणवादी
होते
तो
महा-पराक्रमी,
ब्राह्मण
शिरोमणि
रावण
के
स्थान
पर
एक
महान
क्षत्रिय
राजा
जनक
को
अपना
प्रिय
धनुष
भेंट
ना
करते.
अपने
पिता
सप्तर्षि
जमदग्नि
की
हत्या
के
बदले
के
कारण
भगवान
परशुराम
जैसे
महानायक
को
सभी
ने
खलनायक
बना
दिया.
इसी
के
चलते
उन्होंने
21
बार
दुष्टों
का
संहार
किया.
बाद
में
पश्चाताप
स्वरुप
उन्होंने
सभी
मृतकों
के
श्राद्ध
किए.
उन्होंने
कहा
कि
अज्ञानियों
ने
भगवान
परशुराम
के
क्षत्रियों
के
नरसंहार
की
बात
कह
कर
दुष्प्रचार
किया.
भगवान
परशुराम
हमारे
बीच
अमर
हैं-गुरुदेव
करौली
शंकर
महादेव
ने
कहा
कि
हम
सभी
मिलकर
भी
भगवान
परशुराम
को
क्षत्रियों
से
अलग
नहीं
कर
सकते
क्योंकि
भगवान
परशुराम
की
मां
रेणुका
और
सगी
दादी
सत्यवती
दोनों
ही
क्षत्रिय
थीं.
ब्रह्मर्षि
विश्वामित्र
स्वयं
सप्तर्षि
जमदग्नि
के
सगे
मामा
थे.
भगवान
परशुराम
ने
शास्त्रों
की
शिक्षा
अपने
पिताश्री
सप्तर्षी
जमदग्नि
तथा
अपने
दादाश्री
ऋषि
ऋचीक
से
पाई
तथा
शस्त्र
चलाने
की
विद्या
भगवान
शंकर
और
अपने
दादाश्री
सप्तर्षि
विश्वामित्र
से
पाई.
ऐसा
एक
भी
चरित्र
का
व्यक्ति
वेद,
पुराण
या
शास्त्रों
में
उल्लेखित
नहीं
है
जो
सतयुग,
त्रेता
और
द्वापर
में
सशरीर
सदैव
उपस्थित
रहा
हो
और
आज
भी
चिरंजीवी
के
रूप
में
हमारे
बीच
में
अमर
हैं.