17 साल पुराने फॉर्मूले से मायावती बिछा रहीं 2024 की बिसात, क्या नतीजे दोहरा पाएगी BSP?

17 साल पुराने फॉर्मूले से मायावती बिछा रहीं 2024 की बिसात, क्या नतीजे दोहरा पाएगी BSP?
17 साल पुराने फॉर्मूले से मायावती बिछा रहीं 2024 की बिसात, क्या नतीजे दोहरा पाएगी BSP?


मायावती
लोकसभा
चुनाव
के
ल‍िए
17
साल
पुराने
फॉर्मूले
पर
काम
कर
रही
हैं.

उत्तर
प्रदेश
की
सियासत
में
सबसे
बड़ी
चुनौती
बसपा
के
लिए
है,
क्योंकि
गठबंधन
के
दौर
पर
पार्टी
प्रमुख
मायावती
अकेले
चुनावी
मैदान
में
उतरी
हैं.
ऐसे
में
मायावती
ने
17
साल
पहले
जिस
फॉर्मूले
से
यूपी
की
चुनावी
जंग
फतह
की
थी,
उसी
तर्ज
पर
2024
में
सियासी
बिसात
बिछाने
में
जुटी
है.
बसपा
ने
सूबे
में
36
सीटों
पर
अभी
तक
उम्मीदवारों
के
नाम
का
ऐलान
किया
है,
जिसमें
सभी
समाज
को
जगह
दी
है.
खास
फोकस
दलित,
मुस्लिम
और
ब्राह्मण
पर
किया
है.
बसपा
ने
इसी
सोशल
इंजीनियरिंग
के
सहारे
2007
में
सत्ता
हासिल
की
थी,
जिसे
अब
2024
में
भी
आजमाने
की
दांव
चला
है.
देखना
है
कि
बसपा
की
यह
रणनीति
कितनी
कारगर
रहती
है?

बसपा
ने
लोकसभा
चुनाव
के
लिए
उम्मीदवारों
की
तीन
अलग-अलग
सूचियां
जारी
की
हैं.
पार्टी
के
राष्ट्रीय
महासचिव
मेवालाल
गौतम
की
ओर
से
बुधवार
को
12
उम्मीदवारों
के
नाम
का
ऐलान
किया
गया
है,
जबकि
उससे
पहले
16
प्रत्याशियों
की
पहली
और
नौ
उम्मीदवारों
की
दूसरी
सूची
बसपा
ने
जारी
की
थी.
अब
तीसरी
लिस्ट
में
12
टिकट
घोषित
किए
गए
हैं.
बसपा
ने
सभी
सीटों
पर
नए
चेहरों
को
आजमाया
है.
2019
के
चुनाव
में
जीते
10
सांसदों
में
से
सिर्फ
गिरीश
चंद्र
जाटव
को
टिकट
दिया,
लेकिन
उनकी
सीट
भी
बदल
दी
है.
गिरीश
को
नगीना
के
बजाय
बुलंदशहर
से
प्रत्याशी
बनाया
है.
बसपा
ने
एक
सीट
पर
उम्मीदवार
बदला
है,
जिसके
चलते
36
उम्मीदवार
मैदान
में
है.

बसपा
की
सोशल
इंजीनियरिंग

बसपा
के
उतारे
उम्मीदवारों
के
जातीय
समीकरण
देखें
तो
पार्टी
की
ओर
से
तीसरी
लिस्ट
में
12
प्रत्याशियों
के
नाम
शामिल
थे.
इनमें
3
ब्राह्मण
3
दलित,
2
मुस्लिम,
1
ठाकुर,
1
खत्री,
2
OBC
हैं.
इसके
पहले
25
उम्मीदवारों
की
दो
सूची
जारी
हुई
थी,
जिसमें
8
सवर्ण,
7
मुस्लिम,
7
अनुसूचित
जाति
और
2
ओबीसी
प्रत्याशी
मैदान
में
हैं.
आठ
सवर्ण
उम्मीदवारों
में
चार
ब्राह्मण
थे
और
चार
ठाकुर
थे.
इस
तरह
36
उम्मीदवारों
के
सियासी
समीकरण
को
देखें
तो
7
ब्राह्मण,
9
मुस्लिम,
5
ठाकुर,
10
दलित
और
चार
ओबीसी
उम्मीदवार
मैदान
में
उतारे
हैं.
बसपा
ने
इसी
तरह
से
2007
बहुजन
से
सर्वजन
की
बिसात
बिछाकर
सभी
दलों
के
गणित
को
बिगाड़
दिया
था.

बसपा
का
बीडीएम
फॉर्मूला

बसपा
ने
2024
के
लोकसभा
चुनाव
जीतने
का
बीडीएम
(ब्राह्मण,
दलित,
मुस्लिम)
फॉर्मूला
बनाया
है.
मायावती
ने
सबसे
ज्यादा
तवज्जो
इन्हीं
तीन
जातियों
को
दी
है.
दलित
समुदाय
से
अभी
तक
10
प्रत्याशी
दिए
हैं,
जो
बसपा
का
कोर
वोटबैंक
माना
जाता
है.
इसके
बाद
बसपा
ने
मुस्लिमों
से
10
टिकट
दिए
और
8
ब्राह्मण
समुदाय
से
प्रत्याशी
उतारे
हैं.
इतना
ही
नहीं
पांच
ठाकुर
प्रत्याशी
भी
दिए
हैं.
पश्चिमी
यूपी
में
बीजेपी,
सपा
और
कांग्रेस
ने
एक
भी
ठाकुर
प्रत्याशी
नहीं
दिया
जबकि
बसपा
ने
तीन
प्रत्याशी
उतारे
हैं.

गाजियाबाद
और
नोएडा
सीट
पर
ठाकुर
मतदाता
चार
लाख
से
ज्यादा
है.
बीजेपी
ने
गाजियाबाद
सीट
से
वीके
सिंह
का
टिकट
काटकर
वैश्य
समुदाय
से
आने
वाले
अतुल
गर्ग
को
प्रत्याशी
बनाया
है
तो
कांग्रेस
से
ब्राह्मण
समुदाय
से
आने
वाली
डॉली
शर्मा
चुनाव
लड़
रही
हैं.
ऐसे
में
बसपा
ने
गाजियाबाद
सीट
के
साथ-साथ
नोएडा
और
कैराना
सीट
पर
भी
ठाकुर
कैंडिडेट
उतारे
हैं.
तीनों
ही
सीटों
पर
अगर
बसपा
उम्मीदवार
दलित-ठाकुर
वोटों
का
समीकरण
बनाने
में
सफल
रहते
हैं
तो
विपक्षी
दलों
का
खेल
बिगड़
सकता
है.

बसपा
ने
ज्यादा
मुस्लिम
उम्मीदवारों
को
दिया
वोट

बसपा
मुरादाबाद,
संभल,
अमरोहा,
कन्नौज,
लखनऊ,
रामपुर,
सहारनपुर
जैसी
सीट
पर
मुस्लिम
प्रत्याशी
उतारे
हैं.
कन्नौज
छोड़कर
बाकी
सभी
सीट
पर
चार
लाख
से
ज्यादा
मुस्लिम
हैं.
सपा
ने
चार
सीट
पर
ही
अभी
तक
मुस्लिम
कैंडिडेट
दिए
हैं.
इस
तरह
सपा
की
तुलना
में
बसपा
ने
मुस्लिमों
को
टिकट
ज्यादा
देकर
सियासी
संदेश
देने
की
कवायद
की
है.
सूबे
में
20
फीसदी
मुस्लिम
मतदाता
और
22
फीसदी
दलित.
मायावती
की
कोशिश
इन
सीटों
पर
दलित-मुस्लिम
समीकरण
बनाने
की
है.

ब्राह्मण-दलित
फिर
आएंगे
साथ

मायावती
ने
ब्राह्मण
समुदाय
से
8
प्रत्याशी
अभी
तक
उतारे
हैं
जबकि
पूर्वांचल
की
सीटों
पर
उम्मीदवारों
के
नाम
का
ऐलान
बाकी
है.
बसपा
ने
2007
में
भी
ब्राह्मणों
को
खास
तवज्जो
दी
थी,
जिसका
फायदा
भी
मिला
था.
इसी
के
चलते
बसपा
ने
एक
बार
फिर
से
ब्राह्मणों
पर
भरोसा
जताया
है.
20
फीसदी
टिकट
ब्राह्मणों
को
दिए
हैं
जबकि
उनकी
आबादी
10
फीसदी
है.
मायावती
ने
अलीगढ़,
अकबरपुर,
फतेहपुर
सीकरी
और
मेरठ
जैसी
सीट
पर
ब्राह्मण
समाज
के
प्रत्याशी
उतारे
हैं.
इन
सीटों
पर
अगर
ब्राह्मण
और
दलित
वोट
एकजुट
हुए
तो
बीजेपी
ही
नहीं
सपा
का
सियासी
समीकरण
बिगड़
सकता
है.