सुप्रीम
कोर्ट.
(फाइल
फोटो)
मॉब
लिंचिंग
मामले
में
मंगलवार
को
सुप्रीम
कोर्ट
में
सुनवाई
हुई.
इसमें
कोर्ट
ने
फटकार
लगाते
हुए
कहा
कि
ऐसे
मामलों
को
हिंदू
और
मुसलमान
से
नहीं
जोड़ा
जाना
चाहिए.
कोर्ट
ने
जवाब
नहीं
दाखिल
करने
वाले
राज्यों
को
6
हफ्ते
का
समय
दिया
है.
कहा
है
कि
राज्यों
को
बताना
होगा
कि
उन्होंने
अब
तक
मॉब
लिंचिंग
की
घटनाओं
पर
क्या
कार्रवाई
की
है.
मामले
की
अगली
सुनवाई
गर्मी
की
छुट्टी
के
बाद
होगी.
जस्टिस
बीआर
गवई
की
अध्यक्षता
वाली
बेंच
के
समक्ष
वकील
निजाम
पाशा
ने
दलील
दी
कि
फैसले
का
उल्लंघन
किया
जा
रहा
है.
कृपया
छत्तीसगढ़
की
घटना
देखें,
कैसे
एक
आदमी
की
पीट-पीटकर
हत्या
कर
दी
गई.
राज्य
सरकार
के
हलफनामे
से
पता
चलता
है
कि
यह
मॉब
लिंचिंग
नहीं,
बल्कि
एक
सामान्य
हाथापाई
थी.
मीडिया
रिपोर्ट्स
से
पता
चलता
है
कि
ये
कथित
तौर
पर
गोमांस
ले
जाने
के
कारण
भीड़
द्वारा
की
गई
हत्या
थी.
अगर
राज्य
घटना
से
ही
इनकार
कर
दे
तो
फैसले
का
पालन
कैसे
होगा?
‘उन
लोगों
के
खिलाफ
FIR
क्यों
नहीं,
जिन्होंने
मारपीट
की’
जस्टिस
बीआर
गवई
ने
कहा
कि
उन
10-12
लोगों
के
खिलाफ
एफआईआर
क्यों
नहीं,
जिन्होंने
मारपीट
की?
जवाब
में
राज्य
के
वकील
ने
कहा
कि
हम
इस
पर
गौर
करेंगे.
जस्टिस
राजेश
बिंदल
ने
कहा
कि
बिना
केमिकल
रिपोर्ट
के
गोरक्षा
कानून
कैसे
लगाया
जा
सकता
है?
जवाब
में
राज्य
के
वकील
ने
कहा
कि
वो
रिपोर्ट
थोड़ी
देर
बाद
आती
है.
ये
भी
पढ़ें
वकील
पाशा
ने
कहा
कि
हरियाणा
की
घटना
के
साथ
भी
ऐसा
ही
है.
मॉब
लिंचिंग
के
दौरान
क्या
किया
जाना
चाहिए,
सबसे
अच्छा
तरीका
यह
है
कि
इस
बात
से
इनकार
किया
जाए
कि
यह
मॉब
लिंचिंग
है
ही
नहीं,
वही
हो
रहा
है.
केवल
मध्य
प्रदेश
और
हरियाणा
ने
नोटिस
का
जवाब
दिया.
‘हम
स्पष्ट
कर
रहे
हैं
कि
यह
धर्म
या
जाति
के
बारे
में
नहीं
है’
इस
पर
बेंच
ने
कहा
कि
राज्यों
से
अपेक्षा
थी
कि
वो
कम
से
कम
इस
बात
का
जवाब
दें
कि
ऐसे
मामलों
में
क्या
कार्रवाई
की
गई
है.
हम
उन
सभी
राज्यों
को
छह
सप्ताह
का
समय
देते
हैं,
जिन्होंने
जवाब
दाखिल
नहीं
किया
है.
ऐसे
मामलों
में
उनके
द्वारा
उठाए
गए
कदमों
का
विवरण
भी
दें.
बेंच
ने
पूछा
कि
राजस्थान
के
दर्जी
कन्हैया
लाल
के
मामले
में
क्या
हुआ.
वकील
पाशा
ने
कहा
कि
मुझे
नहीं
लगता
कि
यह
शामिल
है.
इस
पर
बेंच
ने
कहा
कि
आपको
यह
सुनिश्चित
करना
होगा
कि
सभी
राज्य
इसमें
शामिल
हैं.
बेंच
से
वरिष्ठ
वकील
अर्चना
पाठक
दवे
ने
कहा
कि
यह
सिर्फ
मुसलमानों
की
मॉब
लिंचिंग
है.
तब
सुप्रीम
कोर्ट
ने
साफ
किया
कि
हम
स्पष्ट
कर
रहे
हैं
कि
यह
धर्म
या
जाति
के
बारे
में
नहीं
है.