लोकसभा पहुंचने वाले पहले भगवाधारी संत की कहानी, जिन्होंने भिक्षा मांगकर किया गुजारा

लोकसभा पहुंचने वाले पहले भगवाधारी संत की कहानी, जिन्होंने भिक्षा मांगकर किया गुजारा

लोकसभा
चुनाव
का
बिगुल
बज
चुका
है.
हिंदुत्व
की
सियासत
आज
अपने
राजनीतिक
बुलंदी
पर
है.
गोरखनाथ
पीठ
के
महंत
योगी
आदित्यनाथ
यूपी
के
मुख्यमंत्री
है.
गोरखनाथ
मंदिर
के
महंत
आजादी
के
बाद
से
चुनावी
राजनीति
में
सक्रिय
हैं.
90
के
दशक
में
राममंदिर
आंदोलन
के
समय
साधू-संत
बड़ी
संख्या
में
सियासत
में
आए
और
विधायक

सांसद
भी
बने,
लेकिन
आजादी
के
बाद
हुए
पहली
बार
लोकसभा
पहुंचने
वाले
संत
का
नाम
स्वामी
ब्राह्मानंद
था.
गौरक्षा
के
लिए
सड़क
से
सांसद
तक
आवाज
उठाने
वाले
संत
स्वामी
ब्रह्मानंद
भले
ही
जनसंघ
के
टिकट
पर
लोकसभा
सदस्य
चुने
गए,
लेकिन
कांग्रेसी
हो
गए.

आजादी
के
बाद
1951-52
में
लोकसभा
चुनाव
हुए.
गोरखनाथ
के
महंत
दिग्विजयनाथ
1952
और
1957
का
हिंदू
महासभा
से
लड़े,
लेकिन
कांग्रेस
के
आगे
जीत
नहीं
सके.
इसी
दौरान
बुंदेलखंड
में
गौरक्षा
के
लिए
संत
स्वामी
ब्रह्मानंद
आंदोलन
चला
रहे
थे.
स्वामी
करपात्री
महाराज
के
नेतृत्व
में
1966
में
गोहत्या
पर
प्रतिबंध
लगाने
के
लिए
कानून
बनाने
की
मांगने
को
लेकर
देशभर
के
लाखों
साधु-संत
अपने
साथ
गायों-बछड़ों
को
लेकर
संसद
के
बाहर

डटे
थे.
करपात्री
महाराज
के
साथ
स्वामी
ब्राह्मानंद
भी
कंधे
से
कंधा
मिलाकर
मजबूती
से
गौरक्षा
के
लिए
जंग
लड़
रहे
थे.

गौरक्षा
के
लिए
प्रयाग
से
दिल्ली
तक
की
पैदल
यात्रा

गौरक्षा
के
लिए
स्वामी
ब्राह्मानंद
प्रयाग
से
दिल्ली
के
लिए
पैदल
यात्रा
की,
जिसमें
हजारों
साधु-महात्मा
शामिल
हुए
थे.
इस
आंदोलन
के
दौरान
तत्कालीन
सरकार
ने
स्वामी
ब्रह्मानंद
को
गिरफ्तार
कर
जेल
भेज
दिया.
जेल
से
छूटे
स्वामी
ब्रह्मानंद
जब
जनता
के
बीच
पहुंचे
तो
लोगों
की
सलाह
पर
चुनावी
राजनीति
में
पहुंचे.
संत
स्वामी
ब्रह्मानंद
को
गिरफ्तार
किया
तो
प्रण
लिया
था
कि
वे
सांसद
बनकर
अपनी
आवाज
को
देश
की
जनता
के
सामने
पहुंचाएंगे.
ब्राह्मानंद
ने
जनसंघ
ज्वाइन
कर
लिया.

54.1
फीसदी
वोट
पाकर
पहली
बार
पहुंचे
लोकसभा

कांग्रेस
की
प्रचंड
लहर
के
बीच
हमीरपुर
लोकसभा
सीट
से
ब्रह्मानंद
पहली
बार
में
ये
54.1
फीसदी
वोट
पाकर
निर्वाचित
हुए.
आजाद
भारत
के
इतिहास
में
ऐसा
पहला
अवसर
था,
जब
किसी
भगवाधारी
संत
संसद
में
पहुंचे
थे.
इतना
ही
नहीं
उन्होंने
गोरक्षा
को
लेकर
संसद
में
एक
घंटे
तक
भाषण
दिया.
स्वामी
ब्रह्मानंद
के
हुंकार
से
कांग्रेस
सरकार
घबराई
गई.
उन्हें
मनाने
की
कोशिश
की
और
इंदिरा
गांधी
आखिरकार
उन्हें
कांग्रेस
में
शामिल
करने
में
पूरी
सफल
हो
गई.

जनसंघ
और
स्वामी
ब्रह्मानंद
के
बीच
मतभेद

बता
दें
कि
1969
में
जब
इंदिरा
गांधी
ने
बैंकों
के
राष्ट्रीयकरण
का
मुद्दा
उठाया
तो
जनसंघ
ने
इसका
विरोध
किया
था,
लेकिन
स्वामी
ब्रह्मानंद
इसके
पक्ष
में
थे.
उन्होंने
इंदिरा
के
फैसले
को
राष्ट्रहित
में
बताया.
इस
कारण
से
जनसंघ
और
स्वामी
ब्रह्मानंद
के
बीच
मतभेद
बढ़
गए
थे.
मौके
की
नजाकत
के
समझते
हुए
इंदिरा
गांधी
ने
स्वामी
ब्रह्मानंद
को
मनाकर
कांग्रेस
में
शामिल
कर
लिया.
कांग्रेस
ने
हमीरपुर
से
1971
में
स्वामी
ब्रह्मानंद
को
टिकट
दे
दिया
और
यह
सीट
एक
बार
फिर
से
कांग्रेस
के
खाते
में

गई.
स्वामी
ब्राह्मानंद
ने
सांसद
बनने
के
बाद
भी
अपने
हाथ
से
पैसा
तक
नहीं
छुआ
था.
इस
तरह
पूरा
जीवन
भिक्षा
लेकर
अपना
जीवन
यापन
किया.

1966
में
चलाया
गोहत्या
निषेध
आंदोलन

स्वामी
ब्रह्मानंद
का
जन्म
बुंदेलखंड
के
हमीरपुर
की
तहसील
सरीला
के
बरहरा
गांव
में
4
दिसंबर,
1894
को
हुआ
था.
ब्राह्मानंद
ने
23
साल
की
आयु
में
ही
संन्यास
ले
लिया
था.
स्वामी
ब्रह्मानंद
ने
गरीबों
के
उत्थान,
शिक्षा,
गोरक्षा
को
लेकर
बहुत
संघर्ष
किया.
गोहत्या
को
लेकर
उन्होंने
बुंदेलखंड
ही
नहीं
बल्कि
देशभर
में
आंदोलन
चलाया.
1966
में
स्वामी
ब्रह्मानंद
ने
गोहत्या
निषेध
आंदोलन
चलाया.
स्वामी
करपात्री
महाराज
के
साथ
मिलकर
ब्राह्मानंद
गौहत्या
पर
प्रतिबंध
लगाने
के
लिए
एक
कानून
की
मांग
कर
रहे
थे,
लेकिन
केंद्र
सरकार
इस
तरह
का
कोई
कानून
लाने
पर
विचार
नहीं
कर
रही
थी.
ऐसे
में
उन्होंने
देशभर
के
साधू-सतों
के
साथ
संसद
का
घेराव
कर
किया
था.
यहीं
से
उन्हें
राष्ट्रीय
स्तर
की
पहचान
मिली
और
सियासत
में
आने
का
रास्ता
भी
मिल
गया.
इसके
बाद
सड़क
से
संसद
तक
गौरक्षा
के
लिए
संघर्ष
करते
रहे.