पंजाबी
सिंगर
अमर
सिंह
चमकीला
पर
बनी
फिल्म.
पंजाब
के
लुधियाना
में
छोटा
सा
गांव
है
दुगली.
यहां
21
जुलाई
1960
को
एक
गरीब
घर
में
जन्मा
धनी
राम
आगे
चलकर
इस
गांव
का
नाम
रौशन
करने
वाला
था,
वो
भी
अंतर्राष्ट्रीय
स्तर
पर.
किसी
ने
भी
उस
समय
यह
नहीं
सोचा
था.
परिवार
बेहद
गरीब
था
इसलिए
धनी
राम
ने
कपड़ा
फैक्ट्री
(बलराज
इंडस्ट्रीज)
में
काम
करना
शुरू
कर
दिया.
उसे
एक
शौक
भी
था
गाना
गाने
का.
यही
शौक
उसे
आगे
चलकर
कितना
फेमस
कर
देगा,
शायद
उसने
खुद
भी
कभी
ये
नहीं
सोचा
होगा.
खाली
वक्त
में
वह
अक्सर
गाने
लिखा
करता
था.
गाना
लिखने
के
साथ-साथ
वो
एक
बेहतरीन
गायक
भी
था.
लेकिन
वो
चाहता
था
कि
उसे
कोई
ऐसा
उस्ताद
मिले
जो
उसके
इस
हुनर
को
और
भी
संवार
सके.
ऐसा
हुआ
भी.
धनी
राम
को
वो
उस्ताद
मिल
भी
गया.
धनी
राम
में
उस्ताद
को
वो
टैलेंट
दिखा.
उसने
धनी
राम
के
लिखे
एक
गीत
को
गाया
भी
और
जैसे
ही
वो
गीत
हिट
हुआ,
उसकी
बदौलत
धनी
राम
का
उस्ताद
तो
रातोरात
स्टार
बन
ही
गया.
लेकिन
आगे
चलकर
इसका
फायदा
धनी
राम
को
भी
मिला.
इसके
बारे
में
आगे
बात
करेंगे.
उससे
पहले
जानते
हैं
धनी
राम
कैसे
इस
उस्ताद
से
मिला.
फिर
कैसे
उस
उस्ताद
के
एक
इंटरनेशनल
शो
से
धनी
राम
को
फायदा
हुआ
और
वह
रातोरात
पंजाब
के
दिल
की
धड़कन
बन
गया.
धनी
राम
की
दो
बड़ी
बहनें
और
दो
छोटे
भाई
थे.
लेकिन
छोटी
ही
उम्र
में
धनी
राम
ने
परिवार
की
जिम्मेदारी
उठा
ली
थी.
कपड़ा
फैक्ट्री
में
काम
करते-करते
7
दिसंबर
1975
को
धनी
राम
की
शादी
गुरमेल
कौर
से
हो
गई.
शादी
के
बाद
उसके
घर
दो
बेटियां
पैदा
हुईं.
हालांकि,
धनी
राम
का
सपना
तो
कुछ
और
ही
था.
वह
एक
बड़ा
सिंगर
बनना
चाहता
था.
वह
इसके
लिए
एक
उस्ताद
ढूंढने
लगा.
उस
समय
पंजाब
के
तीन
बड़े
सिंगर
थे.
कुलदीप
मानक,
सुरेंद्र
शिंदा
और
मोहम्मद
सिद्दीक.
ये
भी
पढ़ें
सुरेंद्र
सिंह
के
साथ
काम
करने
वाले
जगतार
सिंह
ने
एक
चैनल
को
दिए
इंटरव्यू
में
बताया
था
कि
26
जनवरी
1978
के
दिन
उनकी
मुलाकात
धनी
राम
से
हुई.
धनी
राम
जानता
था
कि
जगतार
की
पहचान
सुरेंद्र
शिंदा
और
मोहम्मद
सिद्दीक
से
थी.
जगतार
ने
तब
सुरेंद्र
शिंदा
के
ढोलक
वादक
केसर
सिंह
टिक्की
से
मुलाकात
करवाई.
टिक्की
ने
फिर
धनी
राम
के
लिए
सुरेंद्र
सिंह
शिंदा
से
धनी
राम
की
सिफारिश
की.
सुरेंद्र
ने
भी
धनी
राम
का
गीत
सुना
तो
वो
उससे
काफी
प्रभावित
हुए.
उन्होंने
उसे
अपनी
टीम
में
शामिल
कर
लिया.
शिंदा
के
करीब
होता
गया
धनी
राम
धनी
राम
को
म्यूजिक
के
काफी
इंस्ट्रूमेंट्स
भी
बजाने
आते
थे.
जब
भी
कहीं
सुरेंद्र
सिंह
का
अखाड़ा
लगाता.
तो
धनी
राम
उस
अखाड़े
में
दरी
बिछाने
से
लेकर
स्टेज
सजाने
का
सारा
काम
खुद
करता.
इससे
वह
सुरेंद्र
के
और
करीब
होता
गया.
धीरे-धीरे
सुरेंद्र
के
अखाड़े
में
एक
दो
गीत
गाने
का
मौका
धनी
राम
को
मिलने
लगा.
सुरेंद्र
सिंह
ने
बीबीसी
को
दिए
एक
इंटरव्यू
में
बताया
कि
रामलीला
में
हुए
एक
अखाड़े
में
धनी
राम
ने
इतनी
बेहतरीन
प्रस्तुति
दी
कि
उन्होंने
उसका
नाम
अमर
सिंह
चमकीला
रख
दिया.
पंजाबी
में
चमकीला
मतलब
शाइनिंग
स्टार.
हालांकि,
ये
भी
कहा
जाता
है
कि
धनी
राम
का
कागजी
नाम
भी
अमर
सिंह
ही
था.
ऐसे
चमकी
चमकीला
की
किस्मत
चमकीला
की
किस्मत
तब
खुली
जब
सुरेंद्र
शिंदा
ने
1977
में
उसका
लिखा
पहला
गीत
गाया.
गाने
का
नाम
था
‘मैं
डिग्गी
तिलक
के’.
गाना
सुपरहिट
हुआ
तो
सुरेंद्र
शिंदा
ने
चमकीला
के
लिखे
और
भी
गीत
गाए.
उधर
चमकीला
भी
एक
मौके
की
तलाश
में
था.
क्योंकि
वह
भी
सुरेंद्र
शिंदा
की
तरह
की
मेन
लीड
सिंगर
बनकर
फेमस
होना
चाहता
था.
फिर
आया
साल
1978.
सुरेंद्र
शिंदा
अपने
एक
शो
के
लिए
कनाडा
गए.
उस
समय
सुरेंद्र
शिंदा
की
जोड़ी
सुरिंद्र
सोनिया
के
साथ
थी.
लेकिन
कनाडा
टूर
में
वह
सोनिया
को
नहीं,
बल्कि
गुलशन
कोमल
को
ले
गए.
इससे
सोनिया
को
काफी
बुरा
लगा.
बस
तब
चमकीला
को
वो
मौका
मिल
गया
जिसकी
वो
तलाश
कर
रहा
था.
उसने
अपने
साथ
एक
गाना
गाने
के
लिए
सोनिया
को
राजी
कर
लिया.
1980
में
दोनों
की
एक
एल्बम
रिलीज
हुई.
टकुए
ते
टकुआ
खड़के.
चमकीला
की
पहली
एल्बम
ने
ही
उन्हें
कामयाबी
के
शिखर
पर
पहुंचा
दिया.
हालांकि,
उस
समय
एल्बम
से
ज्यादा
कमाई
अखाड़ों
से
ही
होती
थी.
सोनिया
और
चमकीला
ने
अखाड़े
लगाने
शुरू
किए.
लेकिन
सोनिया
चमकीला
को
प्रोफिट
का
काफी
कम
हिस्सा
देती
थी.
इसलिए
जल्द
ही
ये
जोड़ी
टूट
गई.
इसके
बाद
चमकीला
की
जोड़ी
बनी
मिस
उषा
किरण
और
अमर
नूरी
के
साथ.
लेकिन
ये
दो
जोड़ियां
भी
जल्द
ही
टूट
गईं.
अब
चमकीला
को
तलाश
थी
ऐसी
फीमेल
जोड़ी
की
जो
उनके
अंदाज
में
ही
गाने
गाए.
ऐसे
में
उनकी
मुलाकात
हुई
अमरजोत
कौर
से.
अमरजोत
कौर
उस
समय
कुलदीप
मानक
के
साथ
गाती
थी.
लेकिन
मानक
के
साथ
उनकी
जोड़ी
टूटी
तो
फिर
चमकीला
के
साथ
उनकी
नई
जोड़ी
बन
गई.
दोनों
ने
फिर
कभी
पीछे
मुड़कर
नहीं
देखा.
अमरजोत
से
रचाई
शादी
इस
जोड़ी
ने
1981
में
साथ
में
गीत
गाने
शुरू
किए.
दोनों
की
जोड़ी
को
पंजाब
के
लोग
खूब
पसंद
कर
रहे
थे.
चमकीला
नहीं
चाहता
था
कि
उसकी
जोड़ी
अमरजोत
से
टूटे.
इसलिए
शादीशुदा
होने
के
बावजूद
उसने
अमरजोत
से
दूसरी
शादी
कर
ली.
इन
दोनों
की
जोड़ी
ने
कई
सुपरहिट
गाने
दिए.
हालांकि,
चमकीला
के
ज्यादा
गाने
अश्लीलता
की
कैटगरी
में
आते
थे.
जिसका
कई
बार
विरोध
भी
हुआ.
लेकिन
पंजाब
के
युवाओं
को
उसके
गीत
इतने
पसंद
थे
कि
वो
बस
उसी
को
सुनना
चाहते
थे.
नतीजा
ये
हुआ
कि
पंजाब
के
अन्य
गायकों
का
काम
ठप
होने
लगा.
सभी
चमकीला
के
ही
अखाड़ों
का
इंतजार
करते
थे.
यही
नहीं,
चमकीला
द्वारा
दी
गई
डेट्स
के
हिसाब
से
ही
लोग
अपने
कार्यक्रम
रखने
लगे
थे.
अश्लील
गानों
के
लिए
धमकी
लेकिन
उस
समय
पंजाब
में
अलगाव
का
दौर
था.
अलगाववादियों
ने
चमकीला
को
धमकी
भी
दी
कि
वो
अश्लील
गाने
न
गाए.
चमकीला
के
साथ
काम
करने
वाले
कुलविंदर
कुक्की
ने
बताया
कि
1986
में
चमकीला
ने
अपने
अश्लील
गानों
के
लिए
अलगाववादियों
से
माफी
भी
मांगी
थी.
कहा
था
कि
वो
दोबारा
ऐसे
गाने
नहीं
गाएंगे.
जिसके
बाद
चमकीला
और
अमरजोत
ने
धार्मिक
गाने
भी
गाए.
उनके
गाए
21
धार्मिक
गीतों
ने
तो
धूम
भी
मचाई.
चमकीला
का
क्रेज
इतना
था
कि
उनके
गाए
गानों
से
ही
फिल्में
हिट
हो
जाती
थीं.
1987
में
आई
पंजाबी
फिल्म
पटोला
में
उनका
एक
गीत
था
‘पहले
ललकारे
नाल
मैं
डर
गई’
काफी
मशहूर
हुआ.
इसी
गीत
के
कारण
यह
फिल्म
सुपरहिट
हो
गई.
चमकीला
के
गीत
पर
स्टेज
पर
थिरकीं
श्रीदेवी
इसी
बीच
चमकीला
एक
शो
के
लिए
कनाडा
गया.
इसमें
बॉलीवुड
के
स्टार
भी
शामिल
हुए
थे.
जैसे
ही
स्टेज
पर
चमकीला
आया
तो
10
मिनट
तक
लोगों
ने
खड़े
होकर
उसके
लिए
तालियां
बजाईं.
यह
देख
एक्ट्रेस
श्रीदेवी
हैरान
रह
गई.
जैसे
ही
चमकीला
ने
गीत
गाना
शुरू
किया
तो
श्रीदेवी
भी
खुद
को
नाचने
से
नहीं
रोक
पाईं.
धमकियां
और
सरेआम
हत्या
कुलविंदर
कुक्की
ने
बताया
कि
उस
दौर
में
चमकीला
को
कई
बार
फिरौती
की
धमकियां
भी
आती
थीं.
कई
बार
तो
वह
फिरौती
की
रकम
दे
भी
दिया
करता
था.
लेकिन
चमकीला
के
साथ
काम
करने
वालों
के
बीच
इसे
लेकर
एक
खौफ
सा
बैठ
गया
था.
कई
लोगों
ने
उसके
साथ
काम
करना
छोड़
दिया
था.
इस
पर
चमकीला
ने
उन्हें
समझाया
भी
कि
मेन
सिंगर
तो
मैं
ही
हूं.
तुम
लोग
चिंता
मत
करो.
जो
भी
बुरा
होगा
वो
मेरे
ही
साथ
होगा.
तुम्हें
कुछ
नहीं
होगा.
फिर
आया
8
मार्च
1988
का
दिन.
फिल्लौर
के
पास
महसामपुर
गांव
में
चमकीला
का
अखाड़ा
था.
दोपहर
डेढ़
बजे
अरमजोत
और
चमकीला
स्टेज
से
कुछ
दूरी
पर
अपनी
एंबेसडर
गाड़ी
से
उतरे.
तभी
तीन
लोग
AK47
बंदूक
से
उन
पर
फायरिंग
करने
लगे.
उनकी
गोली
से
अरमजोत
की
पहले
मौत
हो
गई.
फिर
चमकीला
की
भी
गोली
लगने
से
मौत
हो
गई.
दोनों
के
साथ
ढोलक
वादक
बलदेव
सिंह
और
एक
साथी
हरजीत
सिंह
गिल
की
भी
गोली
लगने
से
मौत
हो
गई.
चमकीला
को
मारकर
डाला
भंगड़ा
चमकीला
के
स्टेट
कॉरडिनेटर
मनकू
ने
एक
इंटरव्यू
में
बताया
था
कि
जब
गोलियां
चलने
लगीं
तो
वह
छुपकर
एक
कमरे
में
जा
घुसे.
तब
उन्होंने
देखा
कि
चमकीला
को
मारकर
उन
बंदूकबाजों
ने
उनकी
लाश
के
ऊपर
एक
चिट्ठी
रखी
और
वहां
भंगड़ा
डालने
लगे.
चिट्ठी
में
लिखा
था
‘हमने
कहा
था
कि
ऐसा
मत
कर
लेकिन
ये
नहीं
माना’.
उस
समय
चमकीला
के
ही
एक
साथी
ने
पुलिस
को
इस
गोलीबारी
की
सूचना
दी.
लेकिन
तब
तक
सब
खत्म
हो
चुका
था.
हत्या
के
वक्त
चमकीला
और
अमरदीप
कौर
का
छोटा
बेटा
दीपू
महज
एक
महीने
का
था.
लेकिन
कुछ
दिन
बाद
उसकी
भी
मौत
हो
गई.
इस
जोड़ी
का
एक
बड़ा
बेटा
भी
है
जैमन.
जो
कि
फिलहाल
लुधियाना
में
रहता
है.
चमकीला
की
जब
हत्या
हुई
तो
वह
महज
27
साल
का
था.
कहा
जाता
है
कि
साल
के
365
दिनों
में
उसके
366
अखाड़े
होते
थे.
आज
तक
नहीं
सुलझी
हत्या
का
गुत्थी
सवाल
ये
उठता
है
कि
क्या
चमकीला
के
कातिल
कभी
पकड़े
गए?
किसने
उसे
मरवाया?
चमकीला
की
मौत
को
आज
36
साल
हो
चुके
हैं
लेकिन
अब
तक
इस
हत्याकांड
के
पीछे
की
न
तो
साफ
कोई
वजह
सामने
आ
सकी
है.
और
नही
चमकीला
के
कातिल
कभी
पकड़े
गए.
हालांकि,
इस
हत्याकांड
को
लेकर
कई
थ्योरी
सामने
आ
चुकी
हैं.
कुछ
लोगों
का
कहना
है
कि
चमकीला
को
अमरजोत
कौर
के
घर
वालों
ने
मरवाया
था.
क्योंकि
चमकीला
दलित
बिरादरी
से
था
और
अमरजोत
जट
सिख
बिरादरी
से
थीं.
वहीं,
दूसरी
थ्योरी
ये
है
कि
चमकीला
के
कारण
कई
सिंगर्स
का
काम
ठप
हो
चुका
था.
इसलिए
किसी
सिंगर
ने
ही
उसे
मरवाया.
तीसरी
थ्योरी
के
मुताबिक,
चमकीला
को
अलगाववादियों
ने
ही
मरवाया.
हालांकि,
इस
बात
की
कभी
भी
कोई
पुष्टि
नहीं
हो
सकी.
चमकीला
पर
बनी
फिल्म
बता
दें,
चमकीला
की
मौत
के
36
साल
बाद
उस
पर
बनी
एक
फिल्म
Netflix
पर
रिलीज
हुई
है.
जो
कि
दर्शकों
को
खूब
भा
रही
है.
इसमें
पंजाबी
सिंगर
दिलजीत
दोसांझ
ने
चमकीला
की
भूमिका
निभाई
है.
तो
वहीं,
परिणीति
चोपड़ा
ने
अमरजोत
कौर
की
भूमिका
निभाई
है.
फिल्म
का
निर्देशन
इम्तियाज
अली
ने
किया
है.