

अखिलेश
यादव
और
शिवपाल
यादव
उत्तर
प्रदेश
में
सपा
और
कांग्रेस
मिलकर
लोकसभा
चुनाव
लड़
रही
है.
सीट
शेयरिंग
के
तहत
सूबे
की
80
में
से
63
सीट
पर
सपा
और
17
सीट
पर
कांग्रेस
चुनाव
लड़ेगी.
सपा
ने
अभी
तक
अपने
कोटे
की
51
सीटों
पर
उम्मीदवारों
के
नाम
का
ऐलान
किया
है,
लेकिन
अखिलेश
यादव
एक
के
बाद
एक
सीट
पर
प्रत्याशी
बदल
रहे
हैं.
बदायूं
से
लेकर
मेरठ
और
मुरादाबाद
तक
की
सीट
पर
उम्मीदवार
बदले
जा
चुके
हैं.
इस
फैसले
से
सपा
की
रणनीति
पर
सवाल
खड़े
होने
के
साथ-साथ
चुनाव
में
भी
दांव
कहीं
उल्टा
न
पड़
जाए.
सपा
ने
अपने
कोटे
की
63
में
से
51
सीटों
पर
टिकट
घोषित
किए
हैं,
जिनमें
से
अभी
तक
तकरीबन
6
सीटों
पर
उम्मीदवार
के
नाम
बदलने
पड़े
हैं.
इसकी
शुरुआत
बदायूं
सीट
से
होती
है.
सपा
ने
पहले
बदायूं
सीट
से
धर्मेंद्र
यादव
को
प्रत्याशी
बनाया
था,
लेकिन
बाद
में
उनका
नाम
काटकर
शिवपाल
यादव
को
टिकट
दे
दिया
गया.
अब
फिर
से
बदायूं
से
उम्मीदवार
बदले
जाने
की
चर्चा
तेज
है.
शिवपाल
यादव
ने
सार्वजनिक
रूप
से
ऐलान
किया
कि
बदायूं
सीट
से
वह
चुनाव
नहीं
लड़ना
चाहते
हैं,
उनकी
जगह
पर
बेटे
आदित्य
यादव
को
टिकट
देने
की
वकालत
की
है.
उन्होंने
कहा
कि
कार्यकर्ता
सम्मेलन
में
बदायूं
सीट
से
आदित्य
यादव
के
चुनाव
लड़ाने
का
प्रस्ताव
पास
हुआ
है,
जिस
पर
सपा
प्रमुख
अखिलेश
यादव
फैसला
लेंगे.
#WATCH
|
Lok
Sabha
elections
2024
|
On
SP
workers’
conference
proposing
his
son
Aditya
Yadav’s
name
for
the
Badaun
Lok
Sabha
seat,
Samajwadi
Party
leader
Shivpal
Singh
Yadav
says,
“Wherever
we
went
and
held
meetings,
public
has
made
the
demand…Whose
name
did
you
find
in
the
pic.twitter.com/Ao9nAQdLmn—
ANI
(@ANI)
April
3,
2024
बिजनौर,
मुरादाबाद,
नोएडा,
मेरठ
में
बदले
उम्मीदवार
बदायूं
ही
नहीं
बल्कि
बिजनौर,
मुरादाबाद,
नोएडा,
मेरठ
लोकसभा
सीट
पर
अखिलेश
यादव
प्रत्याशी
बदल
चुके
हैं.
बिजनौर
लोकसभा
सीट
पर
सपा
ने
पहले
यशवीर
सिंह
को
प्रत्याशी
बनाया
था,
लेकिन
बाद
में
उनका
टिकट
काटकर
दीपक
सैनी
को
उम्मीदवार
बना
दिया.
इसी
तरह
मेरठ
सीट
से
पहले
तो
सपा
ने
सुप्रीम
कोर्ट
के
वकील
भानू
प्रताप
सिंह
को
टिकट
दिया,
लेकिन
बाद
में
उनका
टिकट
काटकर
अतुल
प्रधान
को
प्रत्याशी
बना
दिया
है.
मेरठ
सीट
से
सपा
विधायक
रफीक
अंसारी
ने
भी
पर्चा
खरीद
लिया
है
तो
योगेश
वर्मा
भी
दावेदारी
कर
रहे
हैं.
ऐसे
में
अखिलेश
को
अतुल
प्रधान,
रफीक
अंसारी
और
योगेश
वर्मा
के
बीच
बैलेंस
बनाना
पड़
सकता
है.
नोएडा
लोकसभा
सीट
से
सपा
ने
पहले
डा.
महेंद्र
नागर
को
उम्मीदवार
बनाया
था,
लेकिन
बाद
में
उनकी
जगह
राहुल
अवाना
को
टिकट
दिया.
यहीं
पर
बात
खत्म
नहीं
हुई
महेंद्र
नागर
लखनऊ
पहुंचे,
जिसके
बाद
नोएडा
के
टिकट
होल्ड
कर
दिया
गया.
दस
दिनों
तक
असमंजस
बना
रहा
और
फिर
सपा
ने
राहुल
अवाना
की
जगह
महेंद्र
नागर
को
फिर
से
प्रत्याशी
बना
दिया.
इसी
तरह
मुरादाबाद
सीट
पर
सपा
ने
पहले
मौजूदा
सांसद
एसटी
हसन
को
प्रत्याशी
बनाया
था.
एसची
हसन
ने
अपना
नामांकन
भी
दाखिल
कर
दिया
था,
लेकिन
दूसरे
दिन
ही
अखिलेश
यादव
ने
रुचि
वीरा
को
टिकट
दे
दिया.
रुची
वीरा
के
नामांकन
करने
के
बाद
भी
अखिलेश
यादव
एसटी
हसन
को
ही
उम्मीदवार
बनाए
रखने
का
दांव
चला,
लेकिन
नामांकन
का
समय
खत्म
हो
जाने
के
चलते
कामयाब
नहीं
हुए.
अखिलेश
की
रणनीति
से
पशोपेश
में
पार्टी
के
नेता
अखिलेश
यादव
के
लोकसभा
सीटों
पर
उम्मीदवार
बदलने
की
रणनीति
को
लेकर
पार्टी
के
अंदर
के
नेता
भी
नहीं
समझ
पा
रहे
हैं
और
जिनको
टिकट
मिला
है,
वो
भी
कशमकश
में
है.
2022
के
विधानसभा
चुनाव
में
भी
सपा
ने
दर्जन
भर
से
ज्यादा
सीटों
पर
उम्मीदवार
की
अदला-बदली
चलती
रही.
यूपी
में
कई
सीटों
पर
सपा
के
दो-दो
उम्मीदवारों
ने
नामांकन
कर
दिया
था,
जिसके
बाद
एक
कैंडिडेट
के
नामांकन
को
रद्द
करने
के
लिए
अखिलेश
यादव
को
निर्वाचन
आधिकारी
को
पत्र
भी
लिखकर
देना
पड़ा
था.
इसके
चलते
मतदाताओं
को
काफी
कन्फ्यूजन
से
गुजरना
पड़ा
था
और
सपा
को
चुनाव
में
इसका
खामियाजा
भी
भुगतना
पड़ा
है.
इसके
बावजूद
सपा
सबक
नहीं
ले
सकी
और
लोकसभा
चुनाव
में
फिर
से
वैसी
ही
स्थिति
बनी
हुई
है.
सपा
प्रमुख
अखिलेश
यादव
लोकसभा
चुनाव
को
लेकर
एक
साल
से
मशक्कत
कर
रहे
हैं
और
हर
एक
सीट
के
कार्यकर्ताओं
के
साथ
बैठक
कर
प्रत्याशी
के
चयन
पर
मंथन
किया
था.
इतना
ही
नहीं
सपा
ने
अपने
सहयोगी
कांग्रेस
से
भी
सीट
के
साथ
उसके
संभावित
उम्मीदवारों
के
नाम
मांगे
थे.
इसके
बाद
भी
अखिलेश
को
आधा
दर्जन
लोकसभा
सीट
पर
उम्मीदवार
बदलने
पड़
गए,
जिसमें
संभल
सीट
पर
शफीकुर्रहमान
बर्क
के
निधन
की
वजह
से
बदलना
पड़ा
तो
बाकी
सीटों
पर
सियासी
घमासान
की
वजह
से
अपने
कदम
पीछे
खींचने
पड़े.
प्रत्याशी
बदलने
से
मतदाताओं
में
गलत
संदेश
वरिष्ठ
पत्रकार
सैयद
कासिम
ने
बताया
कि
अखिलेश
यादव
के
प्रत्याशी
बदलने
के
फैसले
से
मतदाताओं
के
बीच
संदेश
अच्छा
नहीं
जाता
है,
लेकिन
ऐसा
लग
रहा
है
कि
सपा
जमीनी
स्थिति
को
नहीं
समझ
पा
रही
है
और
न
ही
ठोस
रणनीति
बनी
है.
अखिलेश
पहले
प्रत्याशी
की
घोषणा
करते
हैं
और
उसके
बाद
उस
प्रत्याशी
के
फायदे
और
नुकसान
देखने
के
बाद
प्रत्याशी
बदल
रहे
हैं.
बिजनौर
और
मेरठ
में
यही
किया
है,
लेकिन
दोनों
ही
सीट
पर
दलित
समुदाय
के
प्रत्याशी
बदलकर
ओबीसी
को
टिकट
दिया
है.
इससे
सपा
को
नफा
कम
और
नुकसान
ज्यादा
है,
क्योंकि
उनके
फैसले
से
दलितों
की
नाराजगी
चुनाव
में
महंगी
पड़
सकती
है.
विधानसभा
चुनाव
में
हुआ
नुकसान
कासिम
कहते
हैं
कि
विधानसभा
चुनाव
में
इस
तरह
के
लिए
गए
फैसले
ही
नुकसान
साबित
हुए
थे
और
अब
फिर
से
वही
गलती
दोहरा
रहे
हैं.
असमंजस
की
स्थिति
से
तो
कभी
भी
फायदेमंद
नहीं
होता
है.
मुरादाबाद
सीट
पर
ही
देख
लीजिए
एसटी
हसन
साफ
कह
चुके
हैं
कि
रुचि
वीरा
का
प्रचार
नहीं
करेंगे.
एसटी
हसन
के
समर्थक
खुलकर
रुचि
वीरा
का
विरोध
कर
रहे
हैं.
इसी
तरह
मेरठ
में
अतुल
प्रधान
को
भी
अपनो
का
विरोध
झेलना
पड़
सकता
है,
क्योंकि
रफीक
अंसारी
और
शाहिद
मंजूर
के
साथ
उनके
छत्तीस
के
आंकड़े
हैं.
हालांकि,
सभी
राजनीतिक
पार्टियों
से
एक
सीट
पर
कई
दावेदार
होते
हैं,
लेकिन
टिकट
किसी
एक
को
दिया
जाया
है.
ऐसे
में
बाकी
दावेदारों
को
पार्टी
के
बड़े
लीडर
समझाने
का
काम
करते
हैं,
लेकिन
एक
के
बाद
एक
टिकट
बदले
जाने
से
पार्टी
नेताओं
के
बीच
नाराजगी
बढ़
रही
है
और
मतदाताओं
के
बीच
भी
संदेश
जा
रहा
कि
अखिलेश
यादव
मैनेज
नहीं
कर
पा
रहे
हैं.
बीजेपी
भी
सपा
में
उम्मीदवार
के
बदले
जाने
को
लेकर
निशाना
साथ
रही
है
और
सपा
को
कन्फ्यूज
पार्टी
पता
रही
है.
लोकसभा
चुनाव
में
सपा
के
लिए
यह
दांव
उल्टा
भी
पड़
सकता
है?